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श्री यमुनाष्टकम्

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नमामि यमुनामहान सकल सिद्धि हेतुन मदा
मुरारी पद पंकज स्फुरदामन्द रेणुत्कतम् ।
ततस्त नव कानन प्रकाशितमोद पुष्पांबुन ।
सुरासुरसुपूजित स्मरपितु: श्रीयन बिभ्रतेम् ॥ 1 ॥

कालिंदी गिरी मस्तके पटादामन्दपूरोज्ज्वल
विलसगमनोल्लासत्प्रकटगंधशैलोण्ता ।

सघोषगति दन्तुरा समाधिरूढ़डोलोत्तमा
मुकुंदरातिवर्ध्धिनी जयति पद्मबन्धो: सुत ॥ 2 ॥

भुवन भुवनपावनि माधिगतमानेकस्वनैः
प्रियभिरिव सेवीतन शुकमयूरहंसादिभिः ।

तरंगभुजकंकण प्रकटमुक्तिकावकुक-
नितांबततासुंदरीन नमत कृष्णतुर्प्रियं ॥ 3 ॥

अनंत गुण भूषिते शिव विरञ्चि देवस्तुते
घनघननिभे सदा ध्रुवपराशर भीष्टदे ।

विशुद्ध मथुरातटे सकलगोपगोपिवृते
कृपा जलाधि संश्रिते माम् मन: सुखं भवय ॥ 4 ॥

यया चरणपद्मजा मुरारिपो प्रियं भावुका
समागमनतो भवत्सकलसिद्धिदा सेवितं ।

तया सहशातमियतकमलजा सपत्निवय-
हरीप्रियकालिंदया मनसी मे सदा स्थीयतम् ॥ 5 ॥

नमस्तु यमुनै सदा तव चरित्रमत्यद्भूतम्
न जतु यमायतन भवति ते पय: पानत: ।

यमोपि भगिनी सुतं कथमूहन्ति दुष्टानपि
प्रियो भवति सेवा-नत्तव हरस्यथा गोपिका ॥ 6 ॥

मस्तु तव संनिधौ तनुनावत्वमेतावता
न दुलर्भतमारति मुरारिपौ मुकुन्दप्रियें ।

अत:तु तव लालना सुरधुनि परानसंगम-
तवैव भूविकर्तिता न तु कदापि पुष्टिस्थिताः ॥ 7 ॥

स्तुति तव करोति क: कमलजसपत्नी प्रियें
हरीर्यानुसेवया भवति सुख्यामोक्षत: ।

इयं तव कथाधिका सकल गोपिका संगीम्
स्मराश्रमा जलानुभिः सकल गात्रजै: संगमाह ॥ 8 ॥

तवाष्टकमिदं मदा पठति सूरसोते सदा
समस्तदुरितक्षयो भवति वै मुकुन्दे रतिः ।

तया सकलसिद्धयो मुरारिपुष्च संतुष्यति
स्वभावविजयो भवेत् वदति वल्लभः श्री हरेः ॥ 9 ॥

॥ इति श्री वल्लभाचार्य विरचितं यमुनाष्टकं संपूर्णम् ॥

श्री यमुनाष्टकम् के बारे में

श्री यमुनाष्टकम एक पूजनीय संस्कृत स्तोत्र है जिसे श्री वल्लभाचार्य ने दिव्य नदी देवी यमुना की स्तुति में रचा था, जो आध्यात्मिक शुद्धता और महत्व के लिए जानी जाती हैं। यह नदी की दिव्य गुणों, आत्माओं को शुद्ध करने, आध्यात्मिक मार्ग की बाधाओं को दूर करने और भगवान कृष्ण तथा व्रज के निवासियों के साथ उसके संबंध का वर्णन करता है।

अर्थ

यह स्तोत्र यमुना को सूर्य देव की पुत्री के रूप में चित्रित करता है, जिसकी सुवासित जलधारा मथुरा के पास के बागों से बहती है, दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण है और पवित्र संतों सहित भक्तों द्वारा पूजी जाती है। यह उनकी भक्तों को शुद्ध करने, आध्यात्मिक सिद्धि प्रदान करने और कृष्ण व व्रज भक्तों के प्रेममय लीलाओं को साकार करने की क्षमता को दर्शाता है।

लाभ

  • आत्मा और मन को शुद्ध करता है
  • पाप और बाधाएं दूर करता है
  • शांति, आध्यात्मिक विकास और आशीर्वाद लाता है
  • भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति बढ़ाता है
  • भक्तों की रक्षा करता है और उन्हें उन्नत करता है

महत्व

श्री यमुनाष्टकम पुष्टिमार्ग परंपरा और वैष्णवों के बीच विशेष महत्व रखता है, खासकर व्रज यात्राओं और यमुना व कृष्ण को समर्पित शुभ अवसरों पर। इसका पाठ दिव्य कृपा, आध्यात्मिक शुद्धि और इच्छाओं की पूर्ति लाने वाला माना जाता है।

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