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श्री तुलसी नमाष्टकं स्तोत्रम्

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व्रिन्दा, व्रिन्दावनी, विश्वपुजिता, विश्वपावनी ।
पुष्पसारा, नन्दिनी च तुलसी, कृष्णजीवनी ॥
एत नाम अष्टकं चैव स्तोत्र नामार्थ संयुक्तम् ।
या:पठेत तं सम्पूज्य शोभामेध पलम् लभेत ॥

व्रिन्दायै नमः ।
व्रिन्दावनायै नमः ।
विश्वपुजितायै नमः ।
विश्वपावनायै नमः ।
पुष्पसारायै नमः ।
नन्दिन्यै नमः ।
तुलसायै नमः ।
कृष्णजीवने नमः ॥

श्री तुलसी नमाष्टकं स्तोत्रम् के बारे में

श्री तुलसी नामाष्टक स्तोत्रम् तुलसी के पवित्र पौधे को समर्पित एक पवित्र स्तोत्र है, जिसे हिन्दू धर्म में शुद्धता, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह स्तोत्र तुलसी के आठ दिव्य नामों से मिलकर बना है, जो उनके दिव्य गुणों और भगवान कृष्ण से उनके संबंध की स्तुति करता है।

अर्थ

यह स्तोत्र तुलसी को वृंदा, वृन्दावनी, विश्वपूजिता और विश्वपावनी (जो संसार को शुद्ध करती हैं), नंदिनी और कृष्णजीवनी के रूप में वर्णित करता है। यह बताता है कि तुलसी का जाप और पूजा करने से शुभ परिणाम मिलते हैं, नकारात्मकता दूर होती है, स्वास्थ्य लाभ होता है और आध्यात्मिक एवं सांसारिक समृद्धि प्राप्त होती है।

लाभ

  • नकारात्मकता और बुरी शक्तियों को दूर करता है
  • स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु प्रदान करता है
  • आध्यात्मिक विकास और मानसिक शांति बढ़ाता है
  • सफलता और कल्याण के लिए आशीर्वाद देता है
  • घर का वातावरण और परिवार की रक्षा करता है

महत्व

श्री तुलसी नामाष्टक स्तोत्र का जाप भक्तों द्वारा तुलसी को शुद्धिकरण और सुरक्षा के रूप में सम्मानित करने के लिए किया जाता है। इसका जाप सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है, घर की रक्षा करता है और एक सामंजस्यपूर्ण तथा आध्यात्मिक रूप से उन्नत वातावरण को बढ़ावा देता है।

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