श्री नर्मदा अष्टकम्
साबिन्दु सिन्धु सुश्कल तरंग भंग रञ्जितम्
दविषत्सु पाप जात जात करि वारि संयुक्तम्
कृतान्त दूत काल भूत भीति हरि वर्मदे
त्वदीय पद पंकजं नमामी देवी नर्मदे ॥ 1 ॥
त्वदम्बु लीं दीं मीन दिव्य सम्प्रदायकम्
कलौ मलौघ भरहारी सर्वतीर्थ नायकन्
सुमस्ति कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक शर्मदे
त्वदीय पद पंकजं नमामी देवी नर्मदे ॥ 2 ॥
महागभीर नीर पुर पापधूत भूमलान
ध्वनत समस्त पातकारी दरीतपदाचलम्
जगल्लये महाभय म्रिकुण्डुसुं हरम्यदे
त्वदीय पद पंकजं नमामी देवी नर्मदे ॥ 3 ॥
गतान तदैव मैन भयंत्वदम्ब विक्षितं यदा
म्रिकुण्डुसुं शौनक सुरारि सेवि सर्वदा
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे
त्वदीय पद पंकजं नमामी देवी नर्मदे ॥ 4 ॥
अलक्शलक्ष किन्न राम्रसुरादि पूजितम्
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षिलक्ष कुजितम्
वशिष्ठाशिष्ट पिप्पलाद् कर्दमादि शर्मदे
त्वदीय पद पंकजं नमामी देवी नर्मदे ॥ 5 ॥
सनत्कुमार नचिकेत कश्यपत्रि शट्पदाइ
धृतं स्वकीय मनेशु नारदादि शट्पदाइ:
रविंदु रंती देवदेव राजकर्म शर्मदे
त्वदीय पद पंकजं नमामी देवी नर्मदे ॥ 6 ॥
लक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सयुधम्
तस्तु जीवतु तु बुक्ति मुक्ति दाकम्
विरंचि विष्णु शंकरम् स्वकीयधाम वर्मदे
त्वदीय पद पंकजं नमामी देवी नर्मदे ॥ 7 ॥
अहमृतं श्रुवन श्रुतं महेशकेश जातते
किरत सूत वदावेषु पण्डिते शाथे नाते
दुरन्त पाप ताप हरि सर्वजन्तु शर्मदे
त्वदीय पद पंकजं नमामी देवी नर्मदे ॥ 8 ॥
इदन्तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये सदा
पठंति ते निरंतरं ना यान्ति दुर्गतिं कदा
सुलभ्य देव दुलभन महेशधाम गौरवम्
पुनर्भव नार न वै त्रिलोकयान्ति रौरवम् ॥ 9 ॥
त्वदीय पद पंकजं नमामी देवी नर्मदे
नमामी देवी नर्मदे, नमामी देवी नर्मदे
त्वदीय पद पंकजं नमामी देवी नर्मदे