श्री कृष्णाष्टकम् - वसुदेव सुतं दैवम्
वसुदेव सुतं दैवम् कंस चाणूर मर्दनम् ।
दैवकी परम आनंदं कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम् ॥ 1 ॥
अतसि पुष्प संकाशं हर नूपुर शोभितम् ।
रत्न कंकण कयूरं कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम् ॥ 2 ॥
कुटिललक्षं संयुक्तं पूर्णचंद्र निबाननम् ।
विल्सत कुंडलधरं कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम् ॥ 3 ॥
मंदार गंध संयुक्तं चारुहसम् चतुर्भुजम् ।
बरही पिञ्छव चूड़ांगं कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम् ॥ 4 ॥
उत्फुल्ल पद्मपत्राक्षं नील जिमुत संनिभम् ।
यदावणं शिरोरत्नं कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम् ॥ 5 ॥
रुक्मिणी कैलि संयुक्तं पीताम्बर सुशोभितम् ।
आवाप्त तूलसी गंधं कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम् ॥ 6 ॥
गोपिकानां कुचद्वन्दं कुंकुमांकित वक्षसं ।
श्रिणिकैतं महैश्वसं कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम् ॥ 7 ॥
श्रिवत्सांकं महोरस्कं वनमाला विराजितम् ।
शंखचक्रधारं दैवम् कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम् ॥ 8 ॥
॥ इति श्री कृष्णाष्टकम् ॥
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