विन्ध्येश्वरी सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी आरती
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सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी,
कोई तेरा पार न पाया।
पान सुपारी ध्वजा नारियल।
ले तेरी भेंट चढ़ाया,
सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी।
सुवा चोली तेरी अंग विराजे।
केसर तिलक लगाया,
सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी।
नंगे पग मां अकबर आया।
सोने का छत्र चढाया,
सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी।
ऊंचे पर्वत बन्यो देवालय।
नीचे शहर बसाया,
सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी।
सतयुग, द्वापर, त्रेता मध्य।
कलियुग राज सवाया,
सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी।
धूप दीप नैवेद्य आरती।
मोहन भोग लगाया,
सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी।
ध्यानु भगत मैया तेरे गुण गया।
मनवांछित फल पाया।
सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी।
कोई तेरा पार न पाया।
विन्ध्येश्वरी सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी आरती के बारे में
विन्ध्येश्वरी आरती माँ विन्ध्येश्वरी के विराट स्वरूप और पर्वतवासिनी देवी की महिमा करती है। इस आरती में माता की दिव्य शक्ति, करुणा और भक्तों के संकट निवारण की कथा कही गई है। आरती में माता के चन्दन और केसर से सजे रूप, पर्वतों में बसे मंदिरों और भक्तों पर कृपा का विस्तृत वर्णन है। यह आरती भक्तों को माँ की भक्ति में और अधिक लगाव एवं आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है।
अर्थ
इस आरती का अर्थ है माता विन्ध्यवासिनी की शक्तिशाली और करुणामय छवि से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि एवं संकटों से मुक्ति मिलती है। आरती पाठ से भक्तों के मन में श्रद्धा और शुद्धि का संचार होता है।
लाभ
- परिवार में खुशहाली और समृद्धि
- संकटों और रोगों से मुक्ति
- आध्यात्मिक जागरूकता और मानसिक शांति
- भक्तों को माँ की विशेष कृपा
- सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह
महत्व
यह आरती विशेष रूप से नवरात्रि, मंदिरों में पूजा कार्यक्रमों और व्यक्तिगत भक्ति अनुष्ठानों के दौरान गाई जाती है। इससे जीवन में माँ की ममता और शक्ति की अनुभूति होती है।