तुलसी आरती - महारानी नमो नमो
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तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरी की पत्नि नमो-नमो ।
धन तुलसी पुराण तप किया,
शालिग्राम बनी पत्नि ।
जाके पात्र मंझरी कोमल,
श्रीपति कमल चरण लप्टानी ॥
धूप-दीप-नवेद्य आरती,
पुष्पपान की वर्षा बरसानी ।
छप्पन भोग चातिसौं व्यंजन,
बिन तुलसी हरि एक ना मानी ॥
सभी सखि मइया तेरा यश गावे,
भक्तदान दीजये महारानी ।
नमो-नमो तुलसी महारानी,
तुलसी महारानी नमो-नमो ॥
तुलसी महारानी नमो-नमो,
हरी की पत्नि नमो-नमो ।
तुलसी आरती - महारानी नमो नमो के बारे में
तुलसी महारानी, भगवान विष्णु की प्रिय पतिव्रता और आध्यात्मिक शक्ति की प्रतिमा हैं। यह आरती उनकी पूजा और श्रद्धा की अभिव्यक्ति है।
अर्थ
इस आरती में तुलसी माता की महिमा और उनके पवित्र पत्ते को विष्णु भगवान के चरणों की सजावट बताया गया है। इसे पढ़ने से पाप नष्ट होते हैं और भक्तों को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
लाभ
- पापों का नाश और शुद्धि
- भावात्मक शांति और मानसिक संतोष
- धार्मिक और सांसारिक समृद्धि
- परिवार में सुख-शांति और सौभाग्य
महत्व
यह आरती खास कर कार्तिक मास और तुलसी विवाह के दौरान गाई जाती है। इसके नियमित पाठ से भक्तों को तुलसी माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है।