श्री झूलेलाल ॐ जय दूल्हा देवा
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ॐ जय दूल्हा देवा,
सांई जय दूल्हा देवा ।
पूजा कनि था प्रेमी,
सिदुक रखी सेवा ॥
तुहिंजे दर दे केई,
सजन अचनी सावली ।
दान वथन सभु दिली,
सन कोण दिठुभ खाली ॥
॥ ॐ जय दूल्हा देवा...॥
अंधदानी खे दिनव,
अखडिय़ो-दुखिय़ानी खे दारुण ।
पाये मन जुन मुरादुन,
सेवक कनि थारू ॥
॥ ॐ जय दूल्हा देवा...॥
फल फूला मेवा सब्जीयू,
पोखानी मंझी पचिन ।
तुहिजे महिर मायसा अन्न,
बि आपार अपार थियनी ॥
॥ ॐ जय दूल्हा देवा...॥
ज्योति जागे थी जागू में,
लाल तुहिंजी लाली ।
अमरलाल अचु मू वती,
हे विश्व संदा वाली ॥
॥ ॐ जय दूल्हा देवा...॥
जागू जा जीव सभेई,
पानिया बिन प्यास ।
जेठानंद आनंद कर,
पूरण करियो आशा ॥
ॐ जय दूल्हा देवा,
सांई जय दूल्हा देवा ।
पूजा कनि था प्रेमी,
सिदुक रखी सेवा ॥
श्री झूलेलाल ॐ जय दूल्हा देवा के बारे में
यह आरती झूलाल देव की महिमा करती है, जो सिंधु क्षेत्र के लोकदेवता हैं। इसमें उनके दयालु और रक्षक स्वभाव का वर्णन मिलता है।
अर्थ
आरती में झूलाल देव के भक्तों पर अनुकंपा, संकटों से रक्षा और उद्धार की चर्चा है। यह आरती सामुदायिक सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है।
लाभ
- संकटों से मुक्ति और शांति
- सामुदायिक एकता और सुरक्षा
- प्रेम और श्रद्धा का विकास
- आध्यात्मिक प्रगति
महत्व
झूलाल देव की आरती सिंधी समुदाय में प्रमुख पूजा अनुष्ठानों में गाई जाती है।