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श्री चित्रगुप्त आरती श्री विराटंशि कुलभुषण

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श्री विराटंशि कुलभुषण,
यमपुर के धामी ।
पुण्य पाप के लेखक,
चित्रगुप्त स्वामी ॥
सिस मुकुट, कानों में कुंडल,
अति सोहे ।
श्यामवर्ण शशि सा मुख,
सबके मन मोहे ॥

भाल तिलक से भूषित,
लोचन सुविशाला ।
शंख सरिखी गर्दन,
गले में मणिमाला ॥

अर्ध शरीर जनेऊ,
लंबी भुजा छजाई ।
कमल दावत हाथ में,
पादुका पर भजे ॥

नृप सौदास अनार्थी,
था अति बलवला ।
आपकी कृपा द्वारा,
सुरपुर पग धारा ॥

भक्ति भाव से यह,
आरती जो कोई गावे ।
मनवांछित फल पकड़,
सद्गति पावे ॥

श्री चित्रगुप्त आरती श्री विराटंशि कुलभुषण के बारे में

श्री चित्रगुप्त जी, यमराज के लेखपाल, पुण्य-पाप के न्यायी अधिकारी हैं। उनकी आरती भक्तों को न्याय, संरक्षण और आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद देती है।

अर्थ

इस आरती में चित्रगुप्त जी के चार भुजाओं, कलम-दवात, शंख और पत्रिका लेकर पवित्र रूप का वर्णन है। वे सभी जीवों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं और न्याय करते हैं।

लाभ

  • कर्मों का न्यायपूर्ण लेखा-जोखा
  • पापों से मुक्ति और पुण्य की प्राप्ति
  • आध्यात्मिक शांति और संतोष
  • जीवन में शुभ फल और सुरक्षा

महत्व

यह आरती विशेष रूप से भाई दूज के अवसर पर की जाती है। इसका नियमित पाठ पापों की कृपा छोडकर भक्तों को दैवीय आशीर्वाद प्रदान करता है।

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