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पितर आरती

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जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी ।
शरण पड़यों हूँ थारी बाबा, शरण पड़यों हूँ थारी ।।

आप ही रक्षक आप ही दाता, आप ही खेवनहारी ।
मैं मोरख हूँ कछु नहीं जानू, आप ही हो रखवारे ।। जय।।

आप खड़े हैं हरदम हर घड़ी, करने मेरी रखवारी ।
हम सब जन हैं शरण आपकी, है ये अरज गुजारी ।। जय।।

देश और परदेश सब जगह, आप ही करो सहाई ।
काम पड़े पर नाम आपको, लगे बहुत सुखदाई ।। जय।।

भक्त सभी हैं शरण आपकी, अपने सहित परिवार ।
रक्षा करो आप ही सबकी, रटू मैं बारंबार।। जय ।।

जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी ।
शरण पड़यों हूँ थारी बाबा, शरण पड़यों हूँ थारी ।।

पितर आरती के बारे में

पितर आरती पितृ देवताओं की आराधना का महत्वपूर्ण अंग है। यह आरती पितरों के प्रति श्रद्धा, सम्मान और उनके कल्याण के लिए की जाती है। इसमें पितर शक्ति की महत्ता, उनका संरक्षण और पितृपक्ष के महत्व का वर्णन होता है। आरती के माध्यम से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति की प्रार्थना की जाती है।

अर्थ

इस आरती का भाव पितरों की पुण्य प्राप्ति, परिवार की समृद्धि और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना है। आरती में शांति, समृद्धि और परिवार के कल्याण के लिए पितरों से प्रार्थना की जाती है।

लाभ

  • पितर शांति और मोक्ष
  • घर परिवार में सुख-समृद्धि
  • नकारात्मकता और बाधाओं से मुक्ति
  • पारिवारिक कल्याण और सद्भाव

महत्व

पितृ पक्ष और पितृ पूजा के दौरान इस आरती का पाठ विशेष रूप से किया जाता है। यह पितरों की आत्मा को मुक्ति और शांति प्रदान करने में सहायक होती है।

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