माता कालरात्रि की आरती
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कालरात्रि जय-जय महाकाली ।
काल के मुँह से बचाने वाली ॥
दुष्ट संहारक नाम तुम्हारा ।
महाचंडी तेरा अवतार ॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा ।
महाकाली है तेरा पसारा ॥
खडग खप्पर रखने वाली ।
दुष्टों का लहू चखने वाली ॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा ।
सब जगह देखूं तेरा नज़ारा ॥
सभी देवता सभी नर-नारी ।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी ॥
रक्तदंत और अन्नपूर्णा ।
कृपा करे तो कोई भी दुख ना ॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी ।
ना कोई ग़म ना संकट भारी ॥
उस पर कभी कष्ट ना आएं ।
महाकाली माँ जिसे बचाए ॥
तू भी भक्त प्रेम से कह ।
कालरात्रि माँ तेरी जय ॥
माता कालरात्रि की आरती के बारे में
माता कालरात्रि नवरात्रि के सातवें दिन पूजा जाने वाली देवी हैं, जो भय, चिंता और नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं। उनकी आरती से भक्तों को मानसिक शांति, साहस और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
अर्थ
इस आरती में माता कालरात्रि के प्रचंड रूप, उनके चार हाथ, घने बाल और दुष्टों का संहार करने वाले स्वभाव का वर्णन है। यह आरती उनके भक्तों को भय-मुक्ति और संकटों से मुक्ति की कामना करती है।
लाभ
- भीतरी भय और चिंता का नाश
- शारीरिक और मानसिक शक्ति की वृद्धि
- जीवन में सकारात्मक बदलाव और सफलता
- बुरी नजर और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा
महत्व
माता कालरात्रि की आरती नवरात्रि के सातवें दिन विशेष रूप से की जाती है। यह आरती भक्तों को मां की विशेष कृपा प्रदान करती है और जीवन में सुख-शांति लाती है।