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गुरु नानक आरती

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गगन मे थालु रवि चंदु दीपक
बने तारिका मंडल जनक मोती ॥
धूपमल अनिलो पवनु चवरो करे
सगल बनराइ फूलंत जोती ॥

कैसी आरती होइ भव खंडना तेरी आरती
अनहता शब्द बाजत भेरी रहाउ ॥

सहस तव नैन नन नैन है तोहि कउ
सहस मूरति नना एक तोही ॥

सहस पद विमल नन एक पद गंध बिनु
सहस तव गंध इव चलत मोही ॥

सभ महि जोति जोति है सोई
तिस के चनणि सभ महि चननु होइ ॥

गुर साखी जोति परगटु होइ
जो तिसु भावै सु आरती होइ ॥

हरि चरण कमल मकरंद लोभित मनो
अनदिनों मोहि आही पिआसा ॥

क्रिपा जलु देहि नानक सारिंग
कउ होइ जा ते तेरै नाइ वासा ॥

गुरु नानक आरती के बारे में

यह आरती गुरु नानक देव जी के दिव्य जीवन और शिक्षाओं की महिमा करती है। इसमें उनके द्वारा मानवता को दिए गए संदेशों, जैसे सच्चाई, समरसता, और भक्ति की प्रशंसा की जाती है।

अर्थ

आरती में गुरु नानक जी के आध्यात्म और सामाजिक सुधारों का विस्तृत वर्णन है, जो सभी जीवों के लिए समता और प्रेम का उपदेश देते थे।

लाभ

  • आध्यात्मिक जागरण और शांति
  • समानता और एकता की भावना का विकास
  • अहंकार और द्वेष से मुक्ति
  • संचित पापों का नाश

महत्व

सिख धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों पर गुरु नानक आरती का पाठ किया जाता है। यह सिख समुदाय के लिए श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।

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