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गुरु जम्भेश्वर भगवान की आरती

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गुरु जम्भेश्वर की आरती गाऊ,
हाथ जोड़कर शीश नवाऊ।

पींपासर में जनम लिया था,
समराथल पर दरश दिया था,
अद्भुत लीला थारी, बली बली जाऊ।

पींपासर नगरी में आनंद छायो,
नंद जी को लाल, लोहत घर आयो,
थारा युग-युग दर्शन पाऊ।

सब सखियाँ मिल मंगल गावे,
ऐसो अवसर फेर न आवे,
थारा ज्योति में दर्शन पानू।

सदानंद थारी आरती उतारे,
विष्णु नाम का मंत्र उचारे,
थाने सुबह और शाम मनाऊ।

गुरु जम्भेश्वर भगवान की आरती के बारे में

गुरु जंभेश्वर भगवान की आरती उनके संत स्वरूप, धर्म, और सांस्कृतिक सुधारों का गुणगान करती है। गुरुजी ने बिश्नोई समाज की स्थापना की, जिसमें जीव दया, सत्य, तप और प्रकृति संरक्षण का विशेष महत्व है। आरती में गुरुजी की लीलाओं, वन्य जीव रक्षा, संत समाज में सद्भाव व सुधार, और अपने भक्तों के कल्याण के लिए किए गए प्रयासों की विस्तृत चर्चा है। आरती पाठ से नकारात्मक ऊर्जा का नाश, मन की शांति, और समाज में सकारात्मकता आती है।

अर्थ

इस आरती के भाव गुरु जंभेश्वर जी के करुणामय व्यवहार, समाज में प्रेम और धर्म स्थापना, और ब्रह्मा के स्वरूप की पूजा में छुपे हैं। आरती पाठ से भक्तों को सत्य, त्याग, सेवा, और जीवों की रक्षा का संदेश मिलता है।

लाभ

  • मानसिक व पारिवारिक शांति
  • समाज में सत्य, सेवा और दया का विकास
  • जीवों व पर्यावरण सुरक्षा हेतु प्रेरणा
  • संकटों से मुक्ति व सकारात्मकता
  • आध्यात्मिक उन्नति और सद्गुणों का विकास
  • प्रकृति व संस्कृति संरक्षण का भाव

महत्व

यह आरती बिश्नोई समाज के प्रमुख धार्मिक अवसरों, जातियों और सामुदायिक अनुष्ठानों में गायी जाती है। गुरु जंभेश्वर की आराधना से जीवन में धर्म, दया, और प्रकृति संरक्षण का भाव जाग्रत होता है। आरती का पाठ विशेष रूप से गुरु जयंती, पितृपक्ष और गुरु महोत्सव पर शुभ और फलदायी है।

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