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गुरु आरती - श्री नांगली निवासी सतगुरु

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आरती श्री गुरुदेव जी की गाऊं ।
बार-बार चरणन सिर नाओं ॥
त्रिभुवन महिमा गुरु जी की भारी ।
ब्रह्म विष्णु जपे त्रिपुरारी ॥

राम कृष्ण भी बने पुजारी ।
आशीर्वाद में गुरु जी को पाऊं ॥

भाव निधि तारन हार खिवैया ।
भक्तों के प्रभु पार लगाइया ॥

भंवर बीच घूमे मेरी नैया ।
बार बार प्रभु शिश नवाऊं ॥

ज्ञान दृष्टि प्रभु मो को दीजै ।
माया जनित दुख हर लीजै ॥

ज्ञान भानु प्रकाश करिजै ।
आवगमन को दुख नहीं पाऊं ॥

राम नाम प्रभु मोहि लखायो ।
रूप चतुर्भुज हिय दर्शायो ॥

नाद बिंदु पुण्य ज्योति लखायो ।
अखंड ध्यान में गुरु जी को पाऊं ॥

जय जयकार गुरु उपनयन ।
भाव मोचन गुरु नाम कहायो ।
श्री माताजी ने अमृत पाया ।

गुरु आरती - श्री नांगली निवासी सतगुरु के बारे में

श्री नंगली निवासी सतगुरु की आरती उनके दिव्य गुणों, आध्यात्मिक ज्ञान, और भक्तों के उद्धार के लिए की जाती है। यह आरती गुरु की महिमा, करुणा और शक्ति का गुणगान करती है और भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देती है।

अर्थ

आरती में त्रिभुवन में गुरु की महिमा का वर्णन है, जहां ब्रह्मा, विष्णु, शिव, राम, कृष्ण समेत सभी देवता गुरु की पूजा करते हैं। भक्त गुरु से आशीर्वाद, ज्ञान और मोक्ष की प्रार्थना करता है।

लाभ

  • आध्यात्मिक उन्नति और ज्ञान की वृद्धि
  • पापों से मुक्ति और मानसिक शांति
  • माया और दुखों से रक्षा
  • गुरु की कृपा और संरक्षण की प्राप्ति

महत्व

यह आरती गुरु की भक्ति का प्रमुख माध्यम है, जो भक्तों को गुरु के सान्निध्य में आध्यात्मिक शक्ति और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। इसकी नियमित पाठ से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

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