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भैरव आरती

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जय भैरव देव, प्रभु जय भैरव देव।
जय काली और गौरा देवी करत सेवा॥
॥जय भैरव देव...॥
तुमही आप उद्धारक, दुख सिंधु तारक।
भक्तों के सुख कारक, भीषण रूप धारक॥
॥जय भैरव देव...॥

वाहन श्वान विराट, कर त्रिशूल धारी।
महिमा अमित तुम्हारी, जय जय भयहरी॥
॥जय भैरव देव...॥

तुम बिन देव पूजा, सफल नहीं होवे।
चौमुख दीपक, दर्शन दुःख खोवे॥
॥जय भैरव देव...॥

तैल चतिक दही मिश्रित, भाषा वाली तेरी।
कृपा करो भैरव, करो नहीं देरी॥
॥जय भैरव देव...॥

पांव घुँघरू बाजत, आरी डमरू जमकावत।
बटुकनाथ बन बालकजन मन हरषावत॥
॥जय भैरव देव...॥

बटुकनाथ की आरती, जो कोई नर गावे।
कहे धरनिधर, नर मनवांछित फल पाए॥
॥जय भैरव देव...॥

भैरव आरती के बारे में

भगवान भैरव, भगवान शिव के प्रचंड रूप हैं जिन्हें भय और कष्टों के नाशक के रूप में पूजा जाता है। उनकी आरती से भक्तों को सुरक्षा, मानसिक शांति और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति प्राप्त होती है।

अर्थ

इस आरती में भैरव जी की भयंकर और शक्तिशाली स्वरूप, उनके वाहन श्वान और त्रिशूलधारी रूप का वर्णन है। यह आरती भक्तों के सभी भय, बाधाओं और शत्रुओं का नाश करने वाली है।

लाभ

  • भय और कष्टों का नाश
  • नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा
  • मानसिक शांति और आत्मविश्वास का विकास
  • शत्रुओं पर विजय और जीवन में सफलता

महत्व

भैरव आरती विशेष रूप से प्रत्येक शनिवार और अन्य धार्मिक अवसरों पर की जाती है। इसके नियमित पाठ से भगवान भैरव की कृपा प्राप्त होती है और भक्तों का जीवन सुरक्षित और सफल होता है।

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